द्वारकाधिश की नही सुनी किसी ने तो बेटी करिश्मा बनी परिवार का सहारा

पेटलाद से राजेश राठौड़.....                                                                                                                            पेटलावद। बेटियां भी अब बेटो से कम नही है, यह साबित कर रही है एक बेटी! अपने पिता के कार्यो में हाथ बटाते हुए यह बेटी  अपनी दुकान पर पंचर बनाते  इसीलिए हर्षित है कि जीवन की गाड़ी चलाने में वह पिता की सहभागी बन रही है। पिता के संघर्ष में    साथ देकर करिश्मा वाकई में करिश्मा कर रही है।
जी हां ! हम बात कर रहे है रायपुरिया -झाबुआ मार्ग स्थित रामनगर के द्वारकाधीश शर्मा की ,कर्मकांडी करते हुए इनका परिवार करीब 20 वर्ष पूर्व बनी से आकर यहां बस गया। ब्राह्मण परिवार से होने के कारण आसपास के ग्रामो में जाकर कथा -तीज त्यौहार पर भिक्षावर्ती एक मात्र आमदनी का जरिया था।
जवाबदारी और संघर्ष बड़ा
लेकिन परिवार बढ़ने के साथ द्वारकाधीश शर्मा की जवाबदारी भी बढ़ती गई। दो बेटे और 2 बेटियों के पालन पोषण करते करते इस मुखिया ने कई बार सरकारी सहायता की गुहार भी लगाई लेकिन उसे कोई मदद नही मिली।
आवास योजना का लाभ तो ठीक उसे शौचालय का लाभ नही मिला यही नही उसे जमीन जायदाद न होने के कारण मिलने वाला बीपीएल राशन कार्ड  तो ठीक एपीएल का राशन कार्ड भी नही मिला। बेटो को पढ़ाने की चाह में आर्थिक स्थिति आड़े आ रही थी लेकिन उसने हार नही मानी।
पढ़ाई के साथ दुकान पर करिश्मा
बिना किसी सरकारी योजना में मदद लिये खुद के घर पर साइकिल रिपेरयिंग और पंचर सुधारने की छोटी सी  दुकान खोल दी।
इस दुकान पर द्वारकाधीश की पत्नी तथा पुत्री करिश्मा भी सहयोग करती है ।करिश्मा ने बताया कि वह प्राईवेट पढ़ाई करते हुए न केवल घर का काम करती है ,बल्कि दुकान में आने वाले ग्राहकों का ध्यान भी रखती है। उसे खुशी है कि ऐसा कर वह आपने पिता की मदद कर रही है।

बेटियां भी अब बेटो से कम नही है,