श्रीमद भागवत कथा के विराम पश्चात आयोजित महायज्ञ

अटल गोसवामी की रिपोर्ट। ....  गरोठ। श्रीमद भागवत कथा के विराम पश्चात आयोजित महायज्ञ में भानपुरा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री श्री 1008 श्री दिव्यानन्द जी महाराज के सानिध्य एवं युवाचार्य स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में पूर्ण हुआ।
दोपहर में शंकराचार्य जी के अमृत वचनों से पूर्व युवाचार्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष ये चार मुख्य पुरुषार्थ हैं। 
धर्म का वर्ग,मोर अर्थ का वर्ग,सर्प काम का वर्ग बिलाव और मोक्ष का वर्ग मूषक हैं।
जिस प्रकार बिल्ली चूहे को खा जाती हैं इसी प्रकार काम रूपी बिलाव मूषक रूपी मोक्ष को खा जाता हैं।अर्थ रूपी सर्प का धर्मरूपी मोर से सदैव बैर चलता रहता हैं।
मोक्ष में पाप व पुण्य का फल नहीं होता। मोक्ष केवल धर्म का फल है।मोक्ष में कोई बंधन नहीं होता हैं।मोक्ष बन्धन रहित होता हैं।
धर्म को जानने के लिए वेद एवं श्रुति का अध्ययन जरूरी हैं। वेदसम्मत संस्कृति ही धर्म हैं।धर्म के लिए वेद तथा वेद को जानने के लिए ज्ञान जरूरी हैं। वेद श्रुतियों के दिव्यसूत्र मोक्ष प्राप्ति के श्रेष्ठतम साधन है।
धर्म के लिए अर्थ(वित्त) का उपयोग करो फिर सम्मान के लिए उपयोग करो फिर यदि अर्थ का सार्थक उपयोग नहीं किया तो चित्त का बिगड़ना तय है अतः अर्थ का उपयोग युक्तिपूर्ण होना चाहिए क्योंकि अर्थ का अनुचित उपयोग चित्त को बिगाड़ देता हैं।
महापुरुषों के वाक्य जो व्यक्ति हृदय में धारण कर लेते है उनका विवेक जागृत हो जाता हैं तथा इससे वे परमात्मा को पा जाते है।किसी वाक्य,वचन,पद को निरन्तर खोजना एवं ग्रहण करना इसकी युक्ति हैं सुनना, मनन करना,इस मनन का नित्य ध्यान करना,अध्ययन करना, चिन्तन करना यही सतचितानन्द हैं,यही ब्रह्म हैं,यही परमपिता परमेश्वर हैं,यही वह दिव्यशक्ति हैं जिससे ब्रह्माण्ड अपना कार्य सम्पादित करता है। इस अवसर पर भानपुरा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री श्री 1008 श्री दिव्यानन्द जी तीर्थ ने उपस्थित जन को मार्गदर्शन करते हुए कहा कि भगवान कहते है कि शास्त्र मेरे द्वारा ही सम्पादित हैं।शास्त्र रटना नहीं बल्कि हृदयगम्य करना श्रेष्ठ पद्धति है।शास्त्रों को जो हृदय में उतार लेगा वही बुद्धिमान हैं।
भारत के सम्पूर्ण पौराणिक ज्ञान को भागवत गीता में लघुरूप में एकत्र किया गया है इसलिए गीता को गीताशास्त्र कहा गया है।
आपने कहा कि सम्पूर्ण गीता तो ठीक केवल 12 वा अध्याय ही और उसमें भी इस अध्याय के मात्र 8 श्लोको को ही हृदयगम्य कर ले तो जीवन सफल हो जायेगा।
इसमें एक श्लोक में कहा गया है कि प्रत्येक वस्तु, जीव से अपनत्व स्थापित कर ले अद्वैष की स्थिति में आ जावे तो भी हम परमेश्वर मिलन मार्ग की ओर अग्रसर होना आरम्भ हो जाएंगे।
प्रेम और द्वेष दोनों ही परिस्थिति की परिणीति एक ही है न भूख लगना और न नींद आना।
भक्त का सर्वप्रथम लक्षण द्वेष परिस्थिति से विलग होना होता हैं।
*बाह्य पवित्रता से ज्यादा आवश्यक आंतरिक पवित्रता हैं।
अद्वैष का मूल मंत्र गांधी के तीन बन्दरों की प्रतिमा में स्थित हैं।
जो न देखो नहीं देखना नही सुनो नहीं सुनना नही बोलो नही बोलना।
पराधीनता दुख का कारण है सब कुछ आत्मवश में कर लेना ही सुख का कारण है।
जीवन का मुख्य लक्ष्य आत्मबोध हैं। पद प्रतिष्ठा तो मात्र मिथ्या हैं।सांसारिक सुख के लिए जीवन यापन के लिए आवश्यक है लेकिन मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य आत्मबोध स्वयं को जानना ही है। कार्यक्रम के अंत मे पोरवाल समाज, मोहन मार्किट व्यवसायी, ब्राह्मण महिला मंडल, सहित नगर के गणमान्य नागरिकों   ने महाराजश्री का स्वागत किया मोहन मार्किट के व्यवसायी द्वारा कथा आयोजक पण्डित अजय कुमार शर्मा सहित उनके परिवार का स्वागत कर शाल श्रीफल भेंट की । इसी अवसर पर अजय मिश्रा द्वारा गुरुजी की बनाई गई पेंटिग का भी गुरुजी द्वारा अनावरण रस्सी खींच कर किया उस पेंटिंग पर गुरुजी द्वारा आशीर्वचन के साथ साइन किये गये। पण्डित अजय कुमार शर्मा ने बताया कि गुरुवार आज सुबह 10 बजे पुराना बस स्टैंड श्री सत्यनारायण मंदिर पर विशाल भंडारे के आयोजन में अधिक से अधिक संख्या में पधारकर आशीर्वाद स्वरूप प्रसाद ग्रहन करे।

श्री 1008 श्री दिव्यानन्द जी महाराज