नरसिंहपुर के आदिवासी किसानों के सर पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं

नरेन्द्र श्रीवास्तव         

 - नरसिंहपुर के आदिवासी किसानों के सर पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं और वह भयभीत है कि अपनी पुस्तैनी जमीन से बेदखल होकर पलायन को मजबूर है दर सल इन आदिवासी किसानों की जमीन पर दबंगो ने कब्जा कर उनकी खड़ी फसल को बर्बाद कर दिया ....और अब रोजीरोटी के संकट से जूझ रहे आदिवासी किसान दर दर की ठोकर खाने मजबूर है .....



 - जंगली जीबन को छोड़ आदिवासी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके और उनका सामाजिक उत्थान हो सके इसके लिए केंद सरकार द्वारा 84 में आदिवासियों परिवारों को पट्टे पर 2 -2 बीघा जमीन दी गई जिससे वह अपने परिवार का भरणपोषण कर सके और वर्षो से इसी जमीन पर काबिज होकर खेतिवाड़ी कर गुजर बसर करते आ रहे है मगर अब इन आदिवासी किसानों को दो वक्त की रोटी भी नसीब होना बमुश्किल हो रहा है दरसल आदिवासियों की जमीन पर अब रासुकदारो की नजर टेडी हो गई है और कूटरचित तरीके से वे उन्हें हथियाने में जुटे हुए है जिसके लिए वह खोफ का माहौल भी बनाने लगे है ऐसा ही खमरिया गांव के आदिवासी परिवारों के साथ हो रहा है जहां के संभ्रांत परिवारों के दबंगो ने आदिवासी किसानों की खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाकर उसे नष्ट कर दिया औऱ जमीन को अपने कब्जे में ले लिया 


 - अपनी जमीन छीन जाने और खड़ी फसल के बर्बाद होने से ये आदिवासी किसान भयभीत और डरे सहमे है ऊपर से दबंगो द्वारा उन्हें डराया धमकाया जा रहा है जिससे यह पलायन को मजबूर हो रहे है ऐसे हाल में इन आदिवासियों पर रोजीरोटी का भी संकट आ गया है और प्रशासन से न्याय की गुहार लगाने क्लेक्टर्ड की चौखट पर आने को मजबूर होना पड़ रहा है 


- आदिवासी नेता भी किसानों के साथ अत्याचार को लेकर चिंतित है और इसके लिए वह सरकारी सिस्टम को दोष दे रहे है और इन गरीब आदिवासी अन्नदाताओं के साथ हो रहे जुल्म को लेकर आंदोलन का मन बना रहे है ताकि सोए हुए सरकारी तंत्र को जगाया जा सके 





- तमाशबीन बना जिला प्रशासन तक जब पीड़ितों ने अपनी गुहार पहुंचाई तो उन्हें अब आदिवासियो के दर्द का अहसास हो रहा है और पूरे मामले को संज्ञान में लेकर विधिसंगत कार्यवाही का भरोसा दिलाया जा रहा है 




 आदिवासियों की अनदेखी का खामियाजा कई प्रदेशों की सरकार अब तक भुगतती आ रही है और ऐसे हाल में है नक्सलवाद जैसी सामाजिक कुरीतियों का जन्म होता है जरूरत है ऐसे संवेदनशील मामलो में समय रहते संवेदना दिखाते हुए पीड़ितों को न्याय मिले जिससे वह स्वाभिमान पूर्वक जीवन यापन कर सके । ......

अपनी पुस्तैनी जमीन से बेदखल होकर पलायन को मजबूर