जय माता आँत्री -इस मंदिर में मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु काटकर चढ़ाते हैं अपनी जीभ, 101 साल में ड़ेढ हजार से ज्यादा महिलाएं कर चुकी हैं ऐसा। चमत्कारी है आंतरी मां भवानी
गजेन्द्र सिंह चन्द्रावत
मालवा की गौरवशाली शस्य श्यामल धरापरस्थित नीमच जिले के पुण्यांचल कोसुशोभितकरता रेतम नदी के पावन तट पर भक्तिएवंशक्ति का अनुपम स्थल मां दुर्गा का विशाल ऐतिहासिक प्रसिद्ध मंदिर जहांप्रतिदिनसैंकड़ों भक्त चमत्कारी मां भवानी के दर्शन कर अपने आपको धन्य मानते हैं।
मालवा की गौरवशाली शस्य श्यामल धरापरस्थित नीमच जिले के पुण्यांचल कोसुशोभितकरता रेतम नदी के पावन तट पर भक्तिएवंशक्ति का अनुपम स्थल मां दुर्गा का विशाल ऐतिहासिक प्रसिद्ध मंदिर जहांप्रतिदिनसैंकड़ों भक्त चमत्कारी मां भवानी के दर्शन कर अपने आपको धन्य मानते हैं।
मालवांचल में यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल नीमचजिला मुख्यालय से 58 किमी दूर मनासातहसील के दक्षिण में स्थितहै। यह चमत्कारिकभव्य मंदिर प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित होकरवर्तमान में गांधीसागर डूब क्षेत्र में होने से प्रायःनदी का पानी मंदिर को चारों ओर से घेरे रहताहै। प्राकृतिक जल सौदर्य से मंदिर की शोभाद्विगुणित होकरमनमोहक हो जाती है जिसकेकारण दर्शनार्थी बरबस ही खींचे चले आते हैं।दर्शन लाभ के साथ उन्हें नौका विहारका आनंदभी प्राप्त होता है।
मां भवानी के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर कानिर्माण नटनागर शोध संस्थान सीतामऊ केअभिलेख के अनुसारविक्रम संवत् 1327 मेंतत्कालीन रामपुरा स्टेट के राव सेवाजी खीमाजीद्वारा करवाया गया था, जो विक्रम संवत्में बनकरपूर्ण हुआ था। इस मंदिर की लागत 7333 रूपयेबताई जाती है। यह प्राचीन मंदिर मालव माटीकेप्रसिद्ध लेखक, कवि एवं कहानीकार डॉ. पूरणसहगल द्वारा लिखी पुस्तक ’चारण की बेटी’ केअनुसार 700 वर्षपुराना है। जगत जननीजगन्नियन्ता जगदम्बा दक्षिण दिशा से नदी केहनुमान घाट से मंदिर में आकरविराजमान हुई हैं।आज भी हनुमान घाट के पत्थर पर मां के वाहनका पदचिन्ह अंकित है, जहां पूजा अर्चनाकीजाती है तथा दूसरा पदचिन्ह मंदिर पर अंकितहै। स्वयं प्रतिष्ठित माता जो मंदिर के गर्भगृह मेंविराजित है।भैंसावरी माता के नाम से जानीजाती है तथा पास में विराजित (दाईं ओर) शेरकी सवारी पर मां दुर्गा (कालिका) की दिव्यप्र्रतिमा है।
मां भवानी दिन में तीन स्वरूप करती हैं। प्रातःबाल अवस्था, दोपहर में युवा अवस्था तथासायंकाल में शील शांतअवस्था, ऐसे तीन रूपों मेंमां भक्तों को दर्शन देती है और मनोकामना पूर्णकरती है। चैत्र नवरात्रि एवं आश्विननवरात्रि मेंजगदम्बा के दर्शन का विशेष महत्व है। आश्विनशुक्ल प्रतिपदा को घटस्थापना के साथ यहांमंदिर मेंअखण्ड़ ज्योति स्थापित की जाती है।अनेक भक्तों द्वारा भी अलग-अलग अखण्ड़ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है।यह दृश्य दर्शनीयहोकर पुण्यदायी होता है।
प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त यहां पंड़ितों द्वारा दुर्गासप्तशती के पाठ किये जाते हैं। नवमी तिथि कोयहां यज्ञ हवनहोता है जिसे देखने आसपास केगांवों के अलावा दूरदराज से भी कई भक्तगणयहां दर्शनार्थ आते हैं और यज्ञ हवनके दर्शन केसाथ मां के दर्शनों का पुण्यलाभ भी प्राप्त करतेहैं। इस जगत जननी जगदम्बा के मंदिर मेंभक्तगणअपनी मनोकामना पूर्ण होने पर हंसते-हंसते अपनी जिह्ना काटकर मां को भेंट कर देतेहैं। जगदम्बा की असीमकृपा से नौ दिनों में जिह्नापुनः आ जाती है। भक्त मां की जय-जयकारकरने लगता है। परिवार के लोग उसेबैंड़-बाजे,ढ़ोल-ढ़माकों के साथ बंधाकर अपने घर ले जातेहैं। इस चमत्कार को देखने कई भक्तगण आतेरहते हैं।दिव्य चमत्कार का प्रत्यक्ष दर्शन करकृत-कृत हो जाते हैं।
कहा जाता है कि रामपुरा के राव दिवान घोड़े परबैठकर प्रतिदिन सायं अपनी आराध्य मां के दर्शनहेतु आंतरीआते थे और पुनः रामपुरा चले जाते थेइसीलिये यह मां चंद्रावत चुड़ामणी के नाम से भीजानी जाती है। ऐसा भीकहा जाता है किचित्तौड़गढ़ दुर्ग के राणा भवानीसिंह के सुपुत्रचंद्रसिंह ने मां की अनन्य भक्ति की औरशुद्धअंतःकरण की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उनकेसाथ मां कालिका (दुर्गा) आंतरी गांव को पधारीं।इस प्रकार चंद्रसिंहचित्तौड़ से मां कालिका कोआंतरी लाये और प्रतिष्ठा की।
हिन्दुस्तान के कोने-कोने में माता के अनेक तीर्थस्थान हैं जिनका अलग-अलग महत्व है। नीमच-मंदसौर जिलेमें भी मां के अनेक स्थान हैं जिनमेंअरावली व विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला के मध्यजोगणिया माता, भादवामाता, दूधाखेड़ी माता,चैनामाता, कुशलामाता, नालछा माता, देवडुंगरिया माता, सांगा खेड़ा माता, आंवरीमाता(चीताखेड़ाके पास), चामुण्डामाता औरआंतरीमाता आदि परन्तु हमारे जिले मेंभादवामाता व आंतरीमाता दोप्रमुखआद्यशक्तियों के शक्तिपीठ विशेष महत्वरखते हैं। आस्था एवं श्रृद्धा के केन्द्र आंतरीमाताके प्रसिद्ध मंदिर का नामसंभाग के तीर्थ स्थलों मेंभी श्रृद्धापूर्वक लिया जाता है। मनासा तहसीलके गौरव जोगमाता के इस प्रसिद्ध मंदिर केप्रांगणमें प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के पावन पर्व परजनपद पंचायत एवं ग्राम पंचायत के संयुक्ततत्वावधान मेंविशाल मेले का आयोजन कियाजाता है। यह मेला 12 जनवरी से 20 जनवरी केबीच आयोजित किया जाता है।भक्तगण मेले मेंआकर इच्छित वस्तुओं को खरीदते हैं और मेलेका आनंद भी लेते हैं। इसके साथ ही मां के दर्शनों का पुण्यलाभ प्राप्त कर एक पंथ दो काजकरते हैं।