रामनवमी के पावन पर्व पर घरों में रहकर ही करें प्रभु श्री राम की आराधना.. धर्मगुरु आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद गिरी महाराज (मिर्ची बाबा)
भोपाल संवाददाता धर्मगुरु आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी वैराग्य नंद गिरी महाराज (मिर्ची बाबा) ने समस्त देशवासियों को शुभकामना देते हुए कहा कि श्रीरामनवमी सारे जगत् के लिए सौभाग्य का दिन है;क्योंकि अखिल विश्वपति सच्चिदानन्दघन श्रीभगवान् इसी दिन दुर्दान्त रावण के अत्याचार से पीडित पृथ्वी को सुखी करने और सनातन धर्म की मर्यादा की स्थापना करने के लिए मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के रूप मे प्रकट हुए थे।श्रीराम केवल हिन्दुओं के ही ‘राम’ नही हैं, वे अखिल विश्व के प्राणाराम हैं। भगवान् श्रीराम को केवल हिन्दूजाति की सम्पत्ति मानना उनके गुणों को घटाना है,असीम को सीमाबद्ध करना है। विश्व-चराचर में आत्मरूप से नित्य रमण करने वाले और स्वयं ही विश्व-चराचर के रूप में प्रतिभासित सर्वव्यापी सर्वान्तर्यामीस्वरूप नारायण किसी एक देश या व्यक्ति की ही वस्तु कैसे हो सकते हैं? वे सब के हैं,सब के साथ सदा संयुक्त हैं और सर्वमय हैं।जो कोई भी जीव उनकी आदर्श मर्यादा लीला -उनके पुण्य चरित्र का श्रद्धा पूर्वक गान,श्रवण और अनुकरण करता है, वह पवित्र हृदय होकर परम सुख को प्राप्त कर सकता है। उन्ही हमारे श्रीराम का पुण्य जन्मदिवस चैत्र शुक्ल नवमी है। इस सुअवसर पर सभी लोगों को खासकर उनको, जो श्रीराम को साक्षात् भगवान् और अपने आदर्श पूर्वपुरुष के रूप में अवतरित मानते हैं, श्रीराम का जन्मपुण्योत्सव मनाना चाहिए। इस उत्सव का प्रधान उद्देश्य होना चाहिए श्रीराम को प्रसन्न करना और श्रीराम -जन्म का पुण्योत्सव मनाना चाहिए। इस उत्सव का प्रधान उद्देश्य होना चाहिए श्रीराम को प्रसन्न करना और श्रीराम के आदर्श गुणों का अपने में विकास कर श्रीराम कृपा प्राप्त करने का अधिकारी बनना। अतएव विशेष ध्यान श्रीराम के आदर्श चरित्र के अनुकरण पर ही रखना चाहिए।
रामनवमी सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। जो रामनवमी का व्रत करता है, उसके अनेक जन्मार्जित पापों की राशि भस्मीभूत हो जाती है और उसे भगवान् विष्णु का परमपद प्राप्त होता है। श्रीरामनवमी व्रत से भुक्ति एवं मुक्ति दोनों की सिद्धि होती है। जब तक हम तन मन और वचन से शुद्ध नही होते, तब तक न हमारा सांस्कृतिक उत्थान ही सम्भव नही होते, और न हमें कोई आध्यात्मिक लाभ ही प्राप्त हो सकता है। इसीलिए आज के दिन यह संकल्प किया जाता है-
” सकलपापक्षयकामोSहं श्रीरामप्रीतये श्रीरामनवमी व्रतं करिष्ये।”
अर्थात् ‘ सब पापों के क्षय की कामना से मैं श्रीराम की प्रसन्नता के लिए श्रीरामनवमी व्रत करूँगा। ‘ श्रीराम तो भगवान् हैं, अतएव उनकी प्रसन्नता के लिए हृदय की पूर्ण पवित्रता अपेक्षित है।
अतः मुमुक्षुजनों को चाहिए कि आत्मकल्याण के लिए सदा श्रीरामनवमी व्रत करें । श्रीराम नवमी व्रत करने वाला सभी पापों से मुक्त होकर सनातन ब्रह्मा भगवान् श्रीसीताराम जी को प्राप्त कर लेता है।
श्रीरामनवमी तो हमें यही सांस्कृतिक संदेश देती है- अपने को शुद्ध करो, ज्ञान की सीमा का विस्तार करो, आत्मा के साथ ही विश्वात्मा को पहचानो तथा सद्भाव, समभाव और सहभाव से अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाओ, रामभक्ति में लीन होकर राम बन जाओ।’श्रीरामार्पणमस्तु’। स्वयं आनन्दित रहकर दूसरों को आनन्दित करना ही राम का रामत्व है। इसके साथ ही महाराज जी ने कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत देश की जनता से अपील की है कि अपने अपने घरों में रहकर ही भगवान श्री राम की पूजा अर्चना करें।